छोटी दीपावली नरक चतुर्दशी को कहा जाता है। इसे कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।
कारण या कथा-
इस दिन के व्रत और पूजा के विषय मेँ कथा यह है कि रन्तिदेव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होने कभी अनजाने मेँ भी कोई पाप नहीँ किया था लेकिन जब उनकी मृत्यु का समय आया तो यमदूत उनके प्राण लेने आ पहुँचें। उन्हेँ सामने देख राजा आश्चर्यचकित होकर बोले - हे दूत! "मैने कभी कोई पाप कर्म नहीँ किया है फिर आप लोग मुझे लेने क्योँ आए है?" राजा दूतोँ से बोले कि आपके यहाँ आने का तात्पर्य है कि मुझे नरक जाना होगा।अतः आप मुझ पर कृपा करके बताएँ कि मुझसे क्या अपराध हुआ है। राजा की विनयपूर्ण वाणी सुनकर यमदूत ने कहा कि एक बार आपके द्धार से एक ब्राह्राण भूखा लौट गया था। यह उसी पाप का फल है।
यह सुनकर राजा ने यमदूतोँ से कहा कि उन्हेँ अपनी भूल को सुधारने का एक मौका दिया जाए। यमदूत ने राजा की प्रार्थना पर उन्हेँ एक वर्ष की मोहलत दे दी। इसके बाद राजा ब्राह्राणोँ के पास गए और उन्हेँ अपनी परेशानी से अवगत कराया। राजा के पूछने पर बाह्राण बोले -हे राजन्! आपको कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करके ब्राह्राणोँ को भोजन कराना होगा। इसके बाद उनसे अपने अपराध की क्षमा याचना करनी होगी। राजा ने वैसा ही किया और वे अपने पाप कर्म से मुक्त होकर बैकुंठ को गए।
इस प्रकार उस दिन से पाप और नरक से मुक्ति हेतु मृत्युलोक मेँ कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत प्रचलित है।
क्रियाएँ-
इस दिन संध्या के पश्चात् दीपक जलाकर यमराज जी से अकाल मृत्यु से मुक्ति व स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए उपासना की जाती है।
इसके अतिरिक्त इस दिन सुबह शरीर पर उबटन लगाकर पानी मेँ चिचड़ी की पत्तियोँ को डालकर स्नान किया जाता है। इससे सुंदरता प्राप्त होती है।