रक्षाबंधन

रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। सावन मेँ मनाए जाने के कारण इसे 'सावनी' या 'सलूनो' भी कहते हैँ। रक्षाबंधन मे राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व होता है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे तथा सोने या चाँदी जैसी महंगी वस्तु तक की हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंग-बिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बंधन को मजबूत करते है।

कथा {पौराणिक प्रसंग}

रक्षाबंधन का त्योहार कब शुरू हुआ इस विषय मेँ स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीँ है। लेकिन भविष्य पुराण मे वर्णन है कि देव और दानवोँ मेँ जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गए। वहाँ बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थी। उन्होने रेशम का धागा मन्त्रोँ की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। वह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। लोगोँ का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई मेँ इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने मेँ पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

क्रियाएँ

इस दिन बहनेँ अपने भाई के दाहिने हाथ पर राखी बांधकर उसके माथे पर तिलक करती है और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती है। बदले मेँ भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। राखी सामान्यतः बहनेँ भाई को बाँधती है ब्राह्राणोँ, गुरुओँ और परिवार मेँ छोटी लड़कियोँ द्धारा सम्मानित संबधियोँ (जैसे पुत्री द्धारा पिता को ) भी बाँधी जाती है। प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षोँ को राखी बांधने की परंपरा का भी प्रारंभ हो गया है।