गोवर्धन पूजा

दीपावली का दूसरा व दीपोत्सव का चौथा दिन गोवर्धन पूजा के रूप मेँ मनाया जाता है। गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा मेँ स्थित है। यहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओँ का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि इसकी परिक्रमा करने से मनुष्य के सभी दुःखोँ का नाश होता है तथा मन की इच्छा पूरी होती है।

कथा -

गोवर्धन पर्वत व इसकी पूजा के संदर्भ मेँ कथा है कि एक बार देवराज इन्द्र को अपनी शक्ति पर अभिमान हो गया था तो भगवान कृष्ण ने उनके इस अभिमान को नष्ट करने की लीला रचीँ। उन्होने देखा कि सभी ब्रजवासी इन्द्र की पूजा की तैयारी मेँ लगे हुए है। उन्होने ब्रजवासियोँ से कहा कि वर्षा करना तो इन्द्र का कर्त्तव्य है, वे अंहकारी होकर अपने कर्त्तव्य को भूल गए है। इसके विपरीत प्रकृति तो हमेँ पालती - पोसती है फिर भी उसे तनिक भी अभिमान नहीँ है। अतः हमेँ प्रकृति की पूजा करनी चाहिए। इस बात से सभी ब्रजवासी सहमत हुए। इसे इन्द्र ने अपना अपमान मानकर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इससे सभी ब्रजवासी भयभीत हो गए तब श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी को उसके नीचे शरण लेने को कहा। इस प्रकार श्री कृष्ण ने घमंडी इन्द्र का मान-मर्दन किया। इस कारण गोवर्धन पर्वत की पूजा व परिक्रमा की जाती है।

क्रियाएँ -

इस दिन ब्रज मेँ गोवर्धन पूजा व परिक्रमा का विधान है। लोग अपने गोधन की पूजा करते है और गोवंश के संवर्धन का प्रण लेते है। इस दिन मंदिरोँ मेँ गोबर से गोवर्धन का प्रतिक्रत बनाकर पूजा व परिक्रमा लगाई जाती है तथा सब्जियोँ व अनाजोँ को मिलाकर अन्नकूट बनाया जाता है। इसके बाद भगवान को भोग लगाकर भक्तोँ मेँ प्रसादी वितरित की जाती है।